रविवार, 27 मार्च 2016

१६.१ बूढ़े का पश्चात्ताप

न ध्यातुं पदमीश्वरस्य विधिवत्संसारविच्छित्तये
स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुरधर्मोऽपि  नोपार्जितः।
नारीपीनपयोधरोरुयुगलं स्वप्नेऽपि नाऽऽलिङ्गितं
मातुः केवलमेव यौवनवनच्छेदे कुठारा वयम्।।१६.१।।

किसी मुमूर्शु बूढ़े का पश्चात्ताप है कि , संसार के बन्धन को तोड़ने के लिये न मैंने ईश्वर के चरणों का ध्यान किया , न स्वर्ग के दरवाजे तोड़ने की सामर्थ्य रखनेवाले धर्म का ही उपार्जन किया और न कामिनी के कठोर कुच तथा जाँघ का स्वप्न में भी आलिङ्गन किया।  जीवन व्यर्थ ही चला गया।  हम अपनी माता के यौवन को काटने के लिए कुल्हाड़े ही बने और कुछ नहीं।      

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