वयसः परिणामेऽपि यः खलः खल एव सः।
संपक्वमपि माधुर्य नोपयातीन्द्रवारुणम्।।१२.२३।।
अवस्था के ढल जाने पर भी जो खल है वस्तुतः वह खल ही बना रहता है , क्योंकि अच्छी तरह पका हुआ भी इन्द्रायन मीठापन को नहीं प्राप्त होता।
संपक्वमपि माधुर्य नोपयातीन्द्रवारुणम्।।१२.२३।।
अवस्था के ढल जाने पर भी जो खल है वस्तुतः वह खल ही बना रहता है , क्योंकि अच्छी तरह पका हुआ भी इन्द्रायन मीठापन को नहीं प्राप्त होता।