जलबिन्दुनीपातेन क्रमशः पुर्यते घटः।
स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च।।१२.२२।।
धीरे - धीरे एक - एक बूँद पानी से घड़ा भर जाता है। यही बात विद्या , धर्म और धन के लिए लागू होती है। तात्पर्य यह कि , उपर्युक्त्त वस्तुओं के संग्रह में जल्दी न करो। करता चले , धीरे - धीरे कभी पूरा हो ही जायेगा।
स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च।।१२.२२।।
धीरे - धीरे एक - एक बूँद पानी से घड़ा भर जाता है। यही बात विद्या , धर्म और धन के लिए लागू होती है। तात्पर्य यह कि , उपर्युक्त्त वस्तुओं के संग्रह में जल्दी न करो। करता चले , धीरे - धीरे कभी पूरा हो ही जायेगा।
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