सोमवार, 21 मार्च 2016

११.८ गुणों को न जानना

न वेत्ति यो यस्य गुणप्रकर्षं स तं तदा निन्दति नाऽत्र चित्रम्।
यथा किराती कुरिकुम्भलब्धां मुक्त्तां परित्यज्य बिभर्ति गुञ्जाम् ।।११.८।।

जो जिसके गुणों को नहीं जानता , वह उसकी निन्दा करता रहता है , तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है।  देखों न , जंगल की रहनेवाली भिलनी हाथी के मस्तक की मुक्त्ता को छोड़कर घुँघची ही पहनती है।


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