आत्मवर्गं परित्यज्य परवर्गं समाश्रयेत्।
स्वयमेव लयं याति यथा राज्यमधर्मतः।।११.२।।
जो व्यक्त्ति अपना वर्ग छोड़कर पराये वर्ग में जाकर मिल जाता है वह अपने - आप नष्ट हो जाता है। जैसे अधर्म से राजा लोग नष्ट हो जाते हैं।
स्वयमेव लयं याति यथा राज्यमधर्मतः।।११.२।।
जो व्यक्त्ति अपना वर्ग छोड़कर पराये वर्ग में जाकर मिल जाता है वह अपने - आप नष्ट हो जाता है। जैसे अधर्म से राजा लोग नष्ट हो जाते हैं।
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