सोमवार, 21 मार्च 2016

११.२ अधर्म

आत्मवर्गं परित्यज्य परवर्गं समाश्रयेत्।
स्वयमेव लयं याति यथा राज्यमधर्मतः।।११.२।।

जो व्यक्त्ति अपना वर्ग छोड़कर पराये वर्ग में जाकर मिल जाता है वह अपने - आप नष्ट हो जाता है।  जैसे अधर्म से राजा लोग नष्ट हो जाते हैं।

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