सोमवार, 21 मार्च 2016

१०.१ विद्यारूपी रत्न

धनहीनो न हीनश्च धनिकः स सुनिश्चयः।
विद्यारत्नेन हीनो यः स हीनः सर्ववस्तुषु।।१०.१।।

धनहीन मनुष्य हीन नहीं कहा जा सकता, वही वास्तव में धनी है।  किन्तु जो मनुष्य विद्यारूपी रत्न से हीन है , वह सभी वस्तुओं से हीन है।

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