सोमवार, 21 मार्च 2016

११.१५ ब्राह्मण और मार्जार विप्र

परकार्यविहन्ता च दाम्भिकः स्वार्थसाधकः।
छली द्वेषी मृदुक्रुरो विप्रो मार्जार उच्यते।।११.१५।।

जो औरों का काम बिगाड़ता , पाखण्डपरायण रहता , अपना मतलब साधने में तत्पर रहता , छल आदि कर्म करता , ऊपर से मीठा किन्तु हृदय से क्रूर रहता ऐसे ब्राह्मण को मार्जार विप्र कहते हैं।

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