सोमवार, 21 मार्च 2016

१०.५ विधाता

रंङकं करोति राजानं राजानं रंङकमेव च।
धनिनं निर्धनं चैव निर्धनं धनिनं विधिः।।१०.५।।

विधाता कंङगाल को राजा , राजा को कंङगाल , धनी को निर्धन और निर्धन को धनी बनाता ही रहता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें