गुरुवार, 17 मार्च 2016

६.९ स्वयं

स्वयं कर्म करोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते।
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद् विमुच्यते।।६.९।।

जीव स्वयं कर्म करता है और स्वयं उसका शुभाशुभ फल भोगता है। वह स्वयं संसार में चक्कर खाता है और  समय पाकर स्वयं छुटकारा भी पा जाता है।

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