गुरुवार, 17 मार्च 2016

५.१६ व्यर्थ है

वृथा वृष्टिः समद्रेषु वृथा तृप्तेषु भोजनम्।
वृथा दानं धनाढ्येषु वृथा दीपो दिवाऽपि च।।५.१६।।

समुद्र में वर्षा व्यर्थ है।
तृप्त को भोजन व्यर्थ है।
धनाढ्य को दान देना व्यर्थ है।  और
दिन के समय दीपक जलाना व्यर्थ है।

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