गुरुवार, 17 मार्च 2016

६.१४ दुष्ट

कुराजराज्येन कुतः प्रजासुखं कुमित्रमित्रेण कुतोऽभिनिर्वृतिः।
कुदारदारैश्च कुतो गृहे रतिः कुशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः।।६.१४।।

दुष्ट राजा के राज्य में प्रजा को सुख कैसे मिल सकता है ?
दुष्ट मित्र से भला हृदय कब आनन्दित हो सकता है ?
दुष्ट स्त्री के रहने पर घर कैसे अच्छा लगेगा ?
दुष्ट शिष्य को पढ़ाकर यश कैसे प्राप्त हो सकता है ?  

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