शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न वने वने।।२.९।।
हर एक पहाड़ पर माणिक नहीं होता , सभी हाथियों के मस्तक में मोती नहीं होता। सज्जन सर्वत्र नहीं होते और चन्दन सब जंगलों में नहीं होता ।
साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न वने वने।।२.९।।
हर एक पहाड़ पर माणिक नहीं होता , सभी हाथियों के मस्तक में मोती नहीं होता। सज्जन सर्वत्र नहीं होते और चन्दन सब जंगलों में नहीं होता ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें