मंगलवार, 15 मार्च 2016

२. ७ गुप्त बात

मनसा चिन्तितं कार्यं वचसा न प्रकाशयेत्।
मन्त्रेण रक्षयेद् गूढं कार्ये चापि नियोजयेत्।।२.७।।

जो बात मन में सोचे, वह बात वचन से प्रकाशित न करें। उस गुप्त बात की मन्त्रणा द्वारा रक्षा करें और गुप्त ढंग से ही उसे काम में भी लावे।

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