सोमवार, 21 मार्च 2016

१०.१७ भगवान् विश्वम्भर

का चिन्ता मम जीवने यदि हरिर्विश्वम्भरो गीयते
नो चेदर्भक - जीवनाय जननीस्तन्यं कथं निःसरेत्।
इत्यालोच्य मुहुर्मुहुर्यदुपते ! लक्ष्मीपते ! केवलं
त्व्रत्पा दाम्बुजसेवनेन सततं कालो मया नीयते।।१०.१७।।

यदि भगवान् विश्वम्भर कहलाते हैं तो हमें अपने जीवन सम्बन्धी झंझटों (अन्न-वस्त्र आदि) की क्या चिन्ता ? यदि वे विश्वम्भर न होते तो जन्म के पहले ही बच्चे को पीने के लिए माता के स्तन में दूध कैसे उतर आता।  बार-बार इस बात को सोचकर हे यदुपते! हे लक्ष्मीपते ! मैं केवल आप के चरण -कमलों की सेवा करके अपना समय बिताता हूँ।

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