एकाहारेण सन्तुष्टः षट्कर्मनिरतः सदा।
ऋतुकालेऽभिगामी च स विप्रो द्विज उच्यते।।११.१२।।
जो ब्राह्मण केवल एक बार के भोजन से सन्तुष्ट रहता और यज्ञ , अध्ययन , दानादि षट्कर्मों में सदा लीन रहता और केवल ऋतुकाल में स्त्रीगमन करता है , उसे द्विज कहना चाहिए।
ऋतुकालेऽभिगामी च स विप्रो द्विज उच्यते।।११.१२।।
जो ब्राह्मण केवल एक बार के भोजन से सन्तुष्ट रहता और यज्ञ , अध्ययन , दानादि षट्कर्मों में सदा लीन रहता और केवल ऋतुकाल में स्त्रीगमन करता है , उसे द्विज कहना चाहिए।
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