सोमवार, 21 मार्च 2016

१०.१८ भाषान्तर का लोभ

गीर्वाणवाणीषु विशिष्टबुद्धिस्तथापि भाषान्तरलोलुपोऽहम्।
यथा सुधायाममरेषु सत्यां स्वर्गाङ्गनानामधरासवे रुचिः ।।१०.१८।।

यद्यपि मैं देववाणी में विशेष योग्यता रखता हूँ , फिर भाषान्तर का लोभ है ही।  जैसे स्वर्ग में अमृत जैसी उत्तम वस्तु विद्यमान है फिर भी देवताओं को देवांगनाओं के अधरामृत पान करने की रुचि रहती ही है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें