सोमवार, 21 मार्च 2016

११.११ ब्राह्मण और ऋषि

अकृष्टफलमूलानि वनवासरतिः सदा।
कुरुतेऽहरहः श्राद्धमृषिर्विप्रः स उच्यते।।११.११।।

जो ब्राह्मण बिना जोते -बोये फल पर जीवन बिताता , हमेशा वन में रहना पसन्द करता और प्रतिदिन श्राद्ध करता है , उस विप्र को ऋषि कहना चाहिए।

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