सोमवार, 21 मार्च 2016

१०.१५ बसेरा

एकवृक्षे समारूढा नानावर्णा विहङ्गमाः।
प्रभाते दिक्षु दशसु का तत्र परिवेदना।।१०.१५।।

विविध वर्ण (रंग) के पक्षी एक ही वृक्ष पर रातभर बसेरा करते हैं और सबेरे दशों दिशाओं में उड़ जाते हैं।  उसी दशा मनुष्यों की भी है , फिर इसके लिये सन्ताप करने की क्या जरूरत है ?

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