सोमवार, 21 मार्च 2016

११.६ दुर्जन व्यक्त्ति को उपदेश

 न दुर्जनः साधुदशामुपैति बहुप्रकारैरपि शिक्ष्यमाणः।
आमूलसिक्त्तः पयसा घृतेन न निम्बवृक्षो मधुरत्वमेति।।११.६।।

दुर्जन व्यक्त्ति को चाहे कितना भी उपदेश क्यों न दिया जाय वह अच्छी दशा को नहीं पहुँच सकता।  नीम के वृक्ष को चाहे जड़ से लेकर सिर तक घी और दूध से ही क्यों न सींचा जाय फिर भी उसमें मीठापन नहीं आ सकता।

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