सोमवार, 21 मार्च 2016

१०.१२ अपनी बिरादरी

 वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं द्रुमालयं पक्वफलाम्बुसेवनम्।
तृणेषु शय्या शतजिर्णबल्कलं न बन्धुमध्ये धनहीनजीवनम्।।१०.१२।।

बाघ और बड़े - बड़े हाथियों के झुण्ड जिस वन में रहते हों उसमें रहना पड़े , निवास करके पके फल तथा जल पर जीवन -यापन करना पड़ जाय , घास - फूस पर सोना पड़े और सैकड़ों जगह फटे बल्कल वस्त्र पहनना पड़े तो अच्छा पर अपनी बिरादरी में दरिद्र होकर जीवन बिताना अच्छा नहीं है।

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