शनिवार, 19 मार्च 2016

८.३ सत्य है

दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते।
यदन्नं भक्ष्यते नित्यं जायते ताद्वशी प्रजा।।८.३।।

दीपक अन्धकार को खाता है और काजल को जन्माता है।  सत्य है , जो जैसा अन्न सदा खाता है उसकी वैसे ही सन्तति होती है।

८.२ भोजन

इक्षुरापः पयो मूलं ताम्बूलं फलमौषधम्। 
भक्षयित्वाऽपि कर्तव्याः स्नान - दानादिकाः क्रियाः।।८.२।।

ऊख , जल , दूध , पान , फल - मूल , औषधि इन वस्तुओं के भोजन करने पर भी स्नान , दान  आदि क्रिया कर सकते हैं।  

८.१ महात्माओं का धन

अधमा धनमिच्छन्ती धनं मानं च मध्यमाः।
उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम।।८.१।।

अधम धन चाहते हैं , मध्यम धन और मान दोनों पर उत्तम मान ही चाहते हैं।  क्योंकि महात्माओं का धन मान ही है।

७.२१ देह में आत्मा

पुष्पे गन्धं दिले तैलं काष्ठे वह्निं पयो घृतम्।
इक्षौ गुडं तथा देहे पश्याऽऽत्मानं विवेकतः।।७.२१।।

हमे देह में आत्मा को उसी विचार से देखना  चाहिए जिस प्रकार
  1. फूल में गन्ध ,
  2. तिल में तेल ,
  3. काष्ठ में आग ,
  4. दूध में घी और 
  5. ईख में गुड़ 
विद्यमान है। 

७.२० परमार्थियो की शुद्धि

वाचां शौचं च मनसः शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
सर्वभूते दया शौचमेतच्छौचं परार्थिनाम्।।७.२०।।

ये परमार्थियो की शुद्धि है
  1. वचन की शुद्धि ,
  2. मन की शुद्धि ,
  3. इन्द्रियों का संयम ,
  4. जीवों पर दया और 
  5. पवित्रता। 

७.१९ कुत्ते की पूँछ के समान विद्या

श्वानपुच्छमिव व्यर्थं जीवितं विद्यया विना।
न गुह्यगोपने शक्तं न च दंशनिवारणे।।७.१९।।

कुत्ते की पूँछ के समान विद्या बिना जीना व्यर्थ है। कुत्ते की पूँछ गोप्य इंद्रियको ढाँक नहीं सकती और न मच्छर आदि जीवों को उड़ा सकती है।

७.१८ कपोल का मोती

गम्यते यदि मृगेन्द्रमन्दिरं लभ्यते करिकपोलमौक्तिकम्।
जम्बुकालयगते च प्राप्यते वत्सपुच्छ - खरचर्म - खण्डनम्।।७.१८।।

यदि कोई सिंह की गुफा में जा पड़े तो उसको  हाथी के कपोल का मोती मिलता है। और सियार के स्थान में जाने पर बछड़े की पूँछ और गदहे के चमड़े का टुकड़ा मिलता है।

७.१७ नरकवासियों के चिन्ह

अत्यन्तकोपः कटुता च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम्।
नीचप्रसङग कुलहीनसेवा चिन्हानि देहे नरकस्थितानाम्।।७.१७।।

दिये गये चिन्ह नरकवासियों की देहों में रहते हैं
  1. अत्यन्त क्रोध ,
  2. कटुवचन ,
  3. दरिद्रता ,
  4. अपने जनों में बैर ,
  5. नीच का संग और 
  6. कुलहीन की सेवा। 

७.१६ स्वर्ग से अवतरित होने वाले जन

स्वर्गस्थितानामिह जीवलोके चत्वारि चिन्हानि वसन्ती देहे।
दानप्रसङ्गो मधुरा च वाणी देवार्चनं ब्राह्मणतर्पणं च।।७.१६।।

स्वर्ग से अवतरित होने वाले जनो के शरीर में चार चिन्ह रहते है
  1. दान का स्वाभाव ,
  2. मीठा वचन ,
  3. देवता की पूजा और 
  4. ब्राह्मण को तृप्त करना। 
अर्थात् जिन लोगों में दान आदि लक्षण रहे उनको जानना चाहिये कि वे अपने पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग वासी मृत्यु लोक में अवतार लिये हैं।

७.१५ चार बातें ध्यान करने वाली

यस्यार्थास्तस्य मित्राणि यस्यार्थास्तस्य बान्धवाः।
यस्यार्थाः स पुमाँल्लोके यस्यार्थाः स च जीवति।।७.१५।।

ये चार बातें ध्यान करने वाली है
  1. जिसके पास धन रहता है उसके मित्र होते हैं। 
  2. जिसके पास अर्थ रहता है उसी के बन्धु होते हैं। 
  3. जिनके पास धन रहता है वही पुरुष गिना जाता हैं। 
  4. जिसके पास अर्थ रहता है वही जीता है।

७.१४ व्यय करना ही रक्षा है

उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम्।
तडागोदरसंस्थानां परीस्त्रव इवाम्भसाम्।।७.१४।।

अर्जित धन का व्यय करना ही रक्षा है , जैसे नये जल आने पर तड़ाग के जल को निकालना ही रक्षा है।

७.१३ मनुष्य को हंस के समान न होना चाहिये

यत्रोदकस्तत्र वसन्ती हंसा स्तथैव शुष्कं परिवर्जयन्ति।
न हंसतुल्येन नरेण भाव्यं पुनस्त्यजन्तः पुनराश्रयन्तः।।७.१३।।

जहाँ जल रहता है वहाँ ही हंस बसते हैं।  वैसे ही सूखे  सरोवर को छोड़ते हैं और बार बार आश्रय कर लेते हैं।  अतः मनुष्य को हंस के समान न होना चाहिये।

७.१२ सीधे वृक्ष काट लिये जाते हैं

नाऽत्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः।।७.१२।।

अधिक सीधा - साधा होना भी अच्छा नहीं होता। जाकर वन में देखो वहाँ सीधे वृक्ष काट लिये जाते हैं और टेढ़े खड़े रह जाते हैं।

७.११ राजा, ब्राह्मण और स्त्रियों के बल

बाहुवीर्यबलं राज्ञो ब्राह्मणो ब्रह्मविद् बली।
रूप - यौवन - माधुर्यं स्त्रीणां बलमनुत्तमम्।।७.११।।

यह इन लोगों के बल हैं
  1. राजाओं में बाहुबल सम्पन्न राजा ,
  2. ब्राह्मणो में ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मण बली होता है, और
  3. स्त्रियों में रूप तथा यौवन की मधुरता।

७.१० शत्रु को इस प्रकार नीचा दिखाना चाहिये

अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम्।
आत्मतुल्यबलं शत्रुः विनयेन बलेन वा।।७.१०।।

इनको इस प्रकार नीचा दिखाना चाहिये
  1. अपने से प्रबल शत्रु को  उसके अनुकूल चल कर ,
  2. दुष्ट शत्रु को उससे प्रतिकूल चल कर और 
  3. समान बलवाले शत्रु को विनय और बल से।

७.९ प्रसन्नता

तुष्यन्ति भोजने विप्रा मयूरा घनगर्जिते।
साधवः परसम्पत्तौ खलाः परविपत्तिषु।।७.९।।

  1. ब्राह्मण भोजन से ,
  2. मोर मेघ के गर्जन से ,
  3. सज्जन पराये धन से  और 
  4. खल मनुष्य दुसरे पर आई विपत्ति से 
प्रसन्न होते हैं।  

७.८ सुधारने का तरीका

हस्ती अंकुशमात्रेण बाजी हस्तेन ताड्यते।
शृङ्गी लकृतहस्तेन खड्गहस्तेन दुर्जनः।।७.८।।

  1. हाथी अंकुश से ,
  2. घोड़ा चाबुक से ,
  3. सींगवाले जानवर लाठी से और 
  4. दुर्जन तलवार से
ठीक होते हैं।  


७.६ इनको कभी भी पैरों से न छुए

पादाभ्यां न स्पृशेदग्निं गुरुं ब्राह्मणमेव च।
नैव गां च कुमारीं च वृद्धं न शिशुं तथा।।७.६।।

इनको कभी भी पैरों से न छुए
  1. अग्नि 
  2. गुरु 
  3. ब्राह्मण 
  4. गौ 
  5. कुमारी कन्या 
  6. वृद्ध 
  7. बालक।

७.५ इनके बीच में से नहीं निकलना चाहिये

विप्रयोर्विप्रवह्नेश्च दम्पत्योः स्वामिभृत्ययोः।
अन्तरेण न गन्तव्यं हलस्य वृषभस्य च।।७.५।।

इनके बीच में से नहीं निकलना चाहिये
  1. दो ब्राह्मणो के बीच में से 
  2. ब्राह्मण और अग्नि के बीच से 
  3. स्वामी और सेवक के बीच से 
  4. स्त्री - पुरुष के बीच से 
  5. हल - तथा बैल के बीच से।

७.४ तीन बात

सन्तोषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने।
त्रिषु चैव न कर्त्तव्योऽध्ययने जपदानयोः।।७.४।।

इन तीन बातों में सन्तोष धारण करना चाहिए
  1. अपनी स्त्री में 
  2. भोजन में 
  3. धन में। 
इन तीन बातों में कभी भी सन्तुष्ट नहीं होना चाहिए
  1. अध्ययन में 
  2. जप में 
  3. दान में।

७.३ सन्तोषरूपी अमृत

सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तिरेव च।
न च तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावताम्।।७.३।।

सन्तोषरूपी अमृत से तृप्त मनुष्यों को जो सुख और शांति प्राप्त होती है वह धन के लोभ से इधर - उधर मारे - मारे फिरने वालों को कैसे प्राप्त होगी ?

७.२ वही सुखी रहता है

धनधान्यप्रयोगेषु विद्यासंग्रहणेषु च।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्।।७.२।।

इन कामों में जो मनुष्य लज्जा नहीं करता वही सुखी रहता है
  1. धन - धान्य के लेन देन 
  2. विद्याध्ययन 
  3. भोजन और 
  4. सांसारिक व्यवसाय। 

७.१ किसी के समक्ष जाहिर नहीं करना चाहिए

अर्थनाशं मनस्तापं गृहिणीचरितानि च।
नीचवाक्यं चाऽपमानं मतिमान्न प्रकाशयेत्।।७.१।।

इन बातों को बुद्धिमान मनुष्य को किसी के समक्ष जाहिर नहीं करना चाहिए
  1. अपने धन का नाश 
  2. मन का सन्ताप 
  3. स्त्री का चरित्र 
  4. नीच मनुष्य की कही बात और 
  5. अपना अपमान