शनिवार, 26 मार्च 2016

१५.१४ पराये घर

अयममृतनिधानं नायकोऽप्यौषधीनां अमृतमयशरीरः कान्तियुक्तोऽपि  चन्द्रः।
भवति विगतरश्मिर्मण्डलं प्राप्य भानोः परसदननिविष्टः को लघुत्वं न याति।।१५.१४।।  

यद्यपि चन्द्रमा अमृत का भण्डार है , औषधियों का स्वामी है , स्वयं अमृतमय है और कान्तिमान् है।  फिर भी जब वह सूर्य के मण्डल में पड़ जाता है तो किरण रहित हो जाता है।  पराये घर जाकर भला कौन ऐसा है कि जिसकी लघुता न साबित होती हो।  

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