शनिवार, 26 मार्च 2016

१५.७ योग्य अयोग्य

अयुक्तं स्वामिनो युक्तं युक्तं नीचस्य दूषणम्।
अमृतं राहवे मृत्युर्विषं शङ्कर - भूषणम्।।१५.७।।

अयोग्य कार्य भी यदि कोई प्रभावशाली व्यक्त्ति कर गुजरे तो वह उसके लिए योग्य हो जाता है और नीच प्रकृति का मनुष्य यदि उत्तम काम भी करता है तो वह उसके करने से अयोग्य साबित हो जाता है।  जैसे अमृत भी राहु के लिए मृत्यु का कारण बन गया और विष भी शिवजी के कण्ठका श्रिङ्गार हो गया।

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