शनिवार, 26 मार्च 2016

१५.११ अभ्यागतों की सेवा

दूरागतं पथि श्रान्तं वृथा च गृहमागतम्।
अनर्चयित्वा यो भुड्क्ते स वै चाण्डाल उच्यते।।१५.११।।

जो दूर से आ रहा हो , थका हो इन अभ्यागतों की सेवा किये बिना जो भोजन कर लेता है उसे चाण्डाल कहना चाहिए।

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