खलानां कण्टकानां च द्विविधैव प्रतिक्रिया।
उपानद् मुखभङ्गो वा दूरतैव विसर्जनम्।।१५.३।।
दुष्ट मनुष्य और कण्टक , इन दोनों के प्रतिकार के दो ही मार्ग हैं। या तो उनके लिए पनही ( जूते ) का उपयोग किया जाय या तो उन्हें दूर ही से त्याग दें।
उपानद् मुखभङ्गो वा दूरतैव विसर्जनम्।।१५.३।।
दुष्ट मनुष्य और कण्टक , इन दोनों के प्रतिकार के दो ही मार्ग हैं। या तो उनके लिए पनही ( जूते ) का उपयोग किया जाय या तो उन्हें दूर ही से त्याग दें।
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