अनन्तशास्त्रं बहुलाश्च विद्याः अल्पं च कालो बहुविघ्नता च।
यत्सारभूतं तदुपासनीयं हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्।।१५.१०।।
शास्त्र अनन्त हैं , बहुत सी विद्यायें हैं , मनुष्य को उचित है कि जैसे हंस सबको छोड़कर पानी से दूध केवल लेता है , उसी तरह जो अपने मतलब की बात हो , उसे ले लें बाकी सब छोड़ दें।
यत्सारभूतं तदुपासनीयं हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्।।१५.१०।।
शास्त्र अनन्त हैं , बहुत सी विद्यायें हैं , मनुष्य को उचित है कि जैसे हंस सबको छोड़कर पानी से दूध केवल लेता है , उसी तरह जो अपने मतलब की बात हो , उसे ले लें बाकी सब छोड़ दें।
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