शनिवार, 26 मार्च 2016

१५.१३ द्विजमयी नौका

धन्या द्विजमयी नौका विपरीता भवार्णवे।
तरन्त्यधोगताः सर्वे उपरिस्थाः पतन्त्यधः।।१५.१३।।

यह द्विजमयी नौका धन्य है कि , जो इस संसाररूपी सागर में उलटे तौर पर चलती है , जो इससे नीचे (नम्र ) रहते हैं , वे तर जाते हैं और जो ऊपर (उद्धत ) रहते हैं।  वे नीचे चले जाते हैं।

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