शनिवार, 26 मार्च 2016

१५.२ गुरु का एक अक्षर

 एकमेवाक्षरं यस्तु गुरुः शिष्यं प्रबोधयेत्।
पृथिव्यां नास्ति तद् द्रव्यं यद् दत्त्वा चाऽनृणी भवेत्।।१५.२।।

यदि गुरु एक अक्षर भी बोलकर शिष्य को उपदेश दे देता है तो पृथ्वी में कोई ऐसा द्रव्य है ही नहीं जिसे देकर उस गुरु से उऋण हुआ जाय।

 

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