शनिवार, 26 मार्च 2016

१५.८ भोजन, प्रेम, समझदारी और धर्म

तभ्दोजनं यद् द्विजभुक्तशेषं तत्सौहृदं यत् क्रियते परस्मिन्।
सा प्राज्ञता या न करोति पापं दम्भं वीना यः क्रियते स धर्मः।।१५.८।।

वही भोजन भोजन है जो ब्राह्मणों के जीम लेने के बाद बचा हो , वही प्रेम प्रेम है जो स्वार्थ वश अपने ही लोगों में न किया जाकर औरों पर भी किया जाय।  वही विज्ञता ( समझदारी ) है कि जिसके प्रभाव से कोई पाप न हो सके और वही धर्म है कि जिसमें आडम्बर न हो।

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