शनिवार, 26 मार्च 2016

१५.१२ अपनी समझ

पठन्ति चतुरो वेदान् धर्मशास्त्राण्यनेकशः।
आत्मानं नैव जानन्ति दर्वी पाकरसं यथा।।१५.१२।।

कितने लोग चारों वेद और बहुत से धर्मशास्त्र पढ़ जाते हैं , पर वे अपने को नहीं समझ पाते , जैसे की कलछुल पाक में रहकर भी पाक का स्वाद नहीं जान सकती।


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