बन्धनानि खलु सन्ति बहूनि प्रेमरज्जुकृतबन्धनमन्यत्।
दारुभेद - निपुणोऽपि षडङ्घ्रिर्नीष्क्रियो भवति पंकजकोशे।।१५.१७।।
वैसे तो बहुत से बन्धन हैं , पर प्रेम की डोर का बन्धन कुछ और ही है। काठको काटने में निपुण भ्रमर कमलदल को काटने में असमर्थ होकर उसमें बँध जाता है।
दारुभेद - निपुणोऽपि षडङ्घ्रिर्नीष्क्रियो भवति पंकजकोशे।।१५.१७।।
वैसे तो बहुत से बन्धन हैं , पर प्रेम की डोर का बन्धन कुछ और ही है। काठको काटने में निपुण भ्रमर कमलदल को काटने में असमर्थ होकर उसमें बँध जाता है।
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