शनिवार, 26 मार्च 2016

१५.१७ प्रेम की डोर

बन्धनानि खलु सन्ति बहूनि प्रेमरज्जुकृतबन्धनमन्यत्।
दारुभेद - निपुणोऽपि षडङ्घ्रिर्नीष्क्रियो भवति पंकजकोशे।।१५.१७।।

वैसे तो बहुत से बन्धन हैं , पर प्रेम की डोर का बन्धन कुछ और ही है।  काठको काटने में निपुण भ्रमर कमलदल को काटने में असमर्थ होकर उसमें बँध जाता है।  

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