शनिवार, 26 मार्च 2016

१५.४ लक्ष्मी

कुचैलिनं दन्तमलोपधारिणं बह्वाशिनं निष्ठुरभाषिणं  च।
सूर्योदये वाऽस्तमिते शयानं विमुञ्चति श्रीर्यदि चक्रपाणिः।।१५.४।।

मैले कपड़े पहननेवाला , मैले दाँतवाला , भुक्खड़ , नीरस बात करनेवाला और सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय तक सोनेवाला यदि ईश्वर ही हो तो उसे भी लक्ष्मी त्याग देती हैं।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें