परमोत्कगुणो यस्तु निर्गुणोऽपि गुणी भवेत्।
इन्द्रोऽपि लघतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणैः।।८।।
दूसरे मनुष्य जिसके गुणों की प्रशंसा करें वह गुणहीन होता हुआ भी गुणी हो जाता है। और अपने मुँह अपने गुणों का बखान करने से तो इन्द्र भी छोटे ही मानें जायेंगे।
इन्द्रोऽपि लघतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गुणैः।।८।।
दूसरे मनुष्य जिसके गुणों की प्रशंसा करें वह गुणहीन होता हुआ भी गुणी हो जाता है। और अपने मुँह अपने गुणों का बखान करने से तो इन्द्र भी छोटे ही मानें जायेंगे।
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