गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते महत्योऽपि सम्पदः।
पूर्णेन्दुः किं तथा वन्द्यो किष्कलङ्को यथा कृशः।।७।।
गुण सर्वत्र पूजे जाते हैं , धन चाहे जितना हो वह सब जगह नहीं पुजायेगा। जिस तरह कि द्वितीया के दुर्बल चन्द्रमा की वन्दना की जाती है , उस तरह पूर्ण चन्द्रमा की वन्दना नहीं की जाती है।
पूर्णेन्दुः किं तथा वन्द्यो किष्कलङ्को यथा कृशः।।७।।
गुण सर्वत्र पूजे जाते हैं , धन चाहे जितना हो वह सब जगह नहीं पुजायेगा। जिस तरह कि द्वितीया के दुर्बल चन्द्रमा की वन्दना की जाती है , उस तरह पूर्ण चन्द्रमा की वन्दना नहीं की जाती है।
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