रविवार, 27 मार्च 2016

१६.७ गुण

गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते महत्योऽपि सम्पदः।
पूर्णेन्दुः किं तथा वन्द्यो किष्कलङ्को यथा कृशः।।७।।

गुण सर्वत्र पूजे जाते हैं , धन चाहे जितना हो वह सब जगह नहीं पुजायेगा।  जिस तरह कि द्वितीया के दुर्बल  चन्द्रमा की वन्दना की जाती है , उस तरह पूर्ण चन्द्रमा की वन्दना नहीं की जाती है।  

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