दानेन पाणिर्न तु कङ्कणेन स्नानेन शुद्धिर्न तु चन्दनेन।
मानेन तृप्तिर्न तु भोजनेन ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन।।१७.१२।।
हाथों की शोभा होती है दान से न कि कंकणों से। स्नान से शरीर की शुद्धि होती है न कि चन्दनलेप से। सज्जनों की तृप्ति सम्मान से , न कि भोजन से। मोक्ष ( मुक्त्ति ) ज्ञान से होता है न कि अच्छे वेश - भूषा और श्रृंगार से।
मानेन तृप्तिर्न तु भोजनेन ज्ञानेन मुक्तिर्न तु मण्डनेन।।१७.१२।।
हाथों की शोभा होती है दान से न कि कंकणों से। स्नान से शरीर की शुद्धि होती है न कि चन्दनलेप से। सज्जनों की तृप्ति सम्मान से , न कि भोजन से। मोक्ष ( मुक्त्ति ) ज्ञान से होता है न कि अच्छे वेश - भूषा और श्रृंगार से।
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