रविवार, 27 मार्च 2016

१६.६ गुण

गुणैरूत्तमतां  यान्ति नोच्चैरासनसंस्थिताः।
प्रसादशिखरस्थोऽपि किं काकः गरुडायते ? ।।६।।    

मनुष्य अपने गुणों से उत्तम बनता है , ऊँचे आसन पर बैठ जाने से नहीं।  क्या भव्य भवन के शिखर पर बैठकर कौआ कौए से गरुड़ हो जायेगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें