गुणैरूत्तमतां यान्ति नोच्चैरासनसंस्थिताः।
प्रसादशिखरस्थोऽपि किं काकः गरुडायते ? ।।६।।
मनुष्य अपने गुणों से उत्तम बनता है , ऊँचे आसन पर बैठ जाने से नहीं। क्या भव्य भवन के शिखर पर बैठकर कौआ कौए से गरुड़ हो जायेगा।
प्रसादशिखरस्थोऽपि किं काकः गरुडायते ? ।।६।।
मनुष्य अपने गुणों से उत्तम बनता है , ऊँचे आसन पर बैठ जाने से नहीं। क्या भव्य भवन के शिखर पर बैठकर कौआ कौए से गरुड़ हो जायेगा।
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