रविवार, 27 मार्च 2016

१६.३ मूर्ख

यो मोहान्मन्यते मूढो रक्तेयं मयि कामिनी।
स तस्यां वशगो भूत्वा नृत्येत् क्रीडाशकुन्तवत्।।३।।

जो मूर्ख यह सोचता है कि , अमुक स्त्री मेरे पर मुग्ध है , वह उसके वशीभूत होकर खिलौने की चिड़िया के समान नाचता रहता है।

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