रविवार, 27 मार्च 2016

१७.२० वृद्धा और यौवन

अधः पश्यसि किं वृद्धे पतितं तव किं भुवि।।
रे रे मुर्ख ! न जानासि गतं तारुण्यमौक्तिकम्।।१७.२०।। 

हे वृद्धे ! तुम नीचे क्या देखती हो ? क्या पृथ्वी पर तुम्हारी कोई वस्तु गिर पड़ी है ? वृद्धा उत्तर देती है - मेरा यौवनरूपी मोती खो गया है , इसलिए मैं कमर झुका कर उसे ही देख रही हूँ।


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