नापितस्य गृहे क्षौरं पाषाणे गन्धलेपनम्।
आत्मरूपं जले पश्येत् शक्रस्यापि श्रियं हरेत्।।१७.१३।।
जो मनुष्य नाइ के घर हजामत बनवाता , स्वयं पत्थर पर चन्दन घिस कर लगाता और जल में अपनी छाया देखता है , वह यदि इन्द्र भी हो तो उसकी श्री नष्ट हो जाती है।
आत्मरूपं जले पश्येत् शक्रस्यापि श्रियं हरेत्।।१७.१३।।
जो मनुष्य नाइ के घर हजामत बनवाता , स्वयं पत्थर पर चन्दन घिस कर लगाता और जल में अपनी छाया देखता है , वह यदि इन्द्र भी हो तो उसकी श्री नष्ट हो जाती है।
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