रविवार, 27 मार्च 2016

१७.१३ शोभा नष्ट होना

नापितस्य गृहे क्षौरं पाषाणे गन्धलेपनम्।
आत्मरूपं जले पश्येत् शक्रस्यापि श्रियं हरेत्।।१७.१३।।

जो मनुष्य नाइ के घर हजामत बनवाता , स्वयं पत्थर पर चन्दन घिस कर लगाता और जल में अपनी छाया देखता है , वह यदि इन्द्र भी हो तो उसकी श्री नष्ट हो जाती है। 

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