रविवार, 27 मार्च 2016

१७.१० स्वामी के चरणोदक

न दानात् शुद्ध्यते नारी नोपवासशतैरपि।
न तीर्थसेवया तद्वद् भर्तुः पादोदकैर्यथा।।१७.१०।।

स्त्री न दान से , न सैकड़ो तरह के व्रत करने से और न तीर्थाटन करने से ही उतनी पवित्र होती है , कि जितनी स्वामी के चरणोदक से पुनीत हो जाती है।

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