रविवार, 27 मार्च 2016

१६.११ धन

अतिक्लेशेन ये अर्था धर्मस्याऽतिक्रमेण तु।
शत्रूणां प्रणिपातेन ते ह्यर्था न भवन्तु मे।।११।।

ज्यादा तकलीफ उठाकर , धर्म छोड़कर या शत्रु से नीचा देखकर धन प्राप्त होता हो तो, ऐसा धन मुझे नहीं चाहिए।  

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