रविवार, 27 मार्च 2016

१७.१८ मदान्ध राजा और गुणी

दानार्थिनो मधुकरा यदि कर्णतालैर्दुरीकृताः करिवरेण मदान्धबुद्धया। 
तस्यैव गण्डयुगमण्डनहानिरेषा भृङ्गाः पुनर्विकचपद्मवमे वसन्ति।।१८।।

यदि मदके मोह से पहूँचे हुए भौरों को गजराज ने अपने कानों की फड़फड़ाहट से भगा दिया तो इसमें उसीके गण्डस्थलों की शोभा नष्ट हुई। भौंरे तो वहाँ से जाकर फूले हुए कमलों के बीच में निवास करेंगे।  इसी प्रकार यदि कोई मदान्ध राजा किसी गुणी का आदर न करके उसे अपने यहाँ से निकाल देता है तो उससे उस राजा की ही हानि होती है , गुणी तो कहीं - न  - कहीं पहुँच कर अपना अड्डा जमा ही लेगा।

 

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