बुधवार, 16 मार्च 2016

४.५ विद्या

कामधेनुगुणा विद्या ह्यकाले फलदायिनी।
प्रवासे मातृसद्वशी विद्या गुप्तं धनं स्मृतम्।।४.५।।

विद्या में कामधेनु के समान गुण विद्यमान है।  यह असमय में भी फल देती है।  परदेश में तो यह माता की तरह पालन करती है।  इसलिए कहा जाता है कि विद्या गुप्त धन है।

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