कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययागमौ।
कस्याऽडं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः।।४.१८।।
यह कैसा समय है ?
मेरे कौन - कौन मित्र हैं ?
यह कैसा देश है ?
इस समय हमारी क्या आमदनी और क्या खर्च है ?
मै किसके अधीन हूँ ? और
मुझमे कितनी शक्ति है ?
इन बातों को बार - बार सोचते रहना चाहिये।
कस्याऽडं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः।।४.१८।।
यह कैसा समय है ?
मेरे कौन - कौन मित्र हैं ?
यह कैसा देश है ?
इस समय हमारी क्या आमदनी और क्या खर्च है ?
मै किसके अधीन हूँ ? और
मुझमे कितनी शक्ति है ?
इन बातों को बार - बार सोचते रहना चाहिये।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें