बुधवार, 16 मार्च 2016

४.१८ इन बातों को बार - बार सोचते रहना चाहिये

कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययागमौ।
कस्याऽडं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः।।४.१८।।

यह कैसा समय है ?
मेरे कौन - कौन मित्र हैं ?
यह कैसा देश है ?
इस समय हमारी क्या आमदनी और क्या खर्च है ?
मै किसके अधीन हूँ ? और
मुझमे कितनी शक्ति है  ?
इन बातों को बार - बार सोचते रहना चाहिये।  

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