बुधवार, 16 मार्च 2016

४.१६ त्याग दें

त्यजेर्द्धर्मं दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्।
त्यजेत्क्रोधमुखं भार्यां निःस्नेहान् बान्धवांस्त्यजेत्।।४.१६।।

जिस धर्म में दया का उपदेश न हो , वह धर्म त्याग दें।
जिस गुरु में विद्या न हो , उसे त्याग दे।
हमेशा नाराज रहने वाली स्त्री को त्याग दें।  और
स्नेहविहीन भाई -बन्धुओं को त्याग देना चाहिये।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें