त्यजेर्द्धर्मं दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्।
त्यजेत्क्रोधमुखं भार्यां निःस्नेहान् बान्धवांस्त्यजेत्।।४.१६।।
जिस धर्म में दया का उपदेश न हो , वह धर्म त्याग दें।
जिस गुरु में विद्या न हो , उसे त्याग दे।
हमेशा नाराज रहने वाली स्त्री को त्याग दें। और
स्नेहविहीन भाई -बन्धुओं को त्याग देना चाहिये।
त्यजेत्क्रोधमुखं भार्यां निःस्नेहान् बान्धवांस्त्यजेत्।।४.१६।।
जिस धर्म में दया का उपदेश न हो , वह धर्म त्याग दें।
जिस गुरु में विद्या न हो , उसे त्याग दे।
हमेशा नाराज रहने वाली स्त्री को त्याग दें। और
स्नेहविहीन भाई -बन्धुओं को त्याग देना चाहिये।
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