बुधवार, 16 मार्च 2016

४.१४ सूना रहता है

अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिशः शून्यास्त्वबान्धवाः।
मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्या दरिद्रता।।४.१४।।

जिसके पुत्र नहीं है , उसका घर सूना है।
जिसका कोई भाई बन्धु नहीं होता , उसके लिए दिशाएँ शून्य रहती हैं।
मूर्ख मनुष्य का हृदय शून्य रहता है।  और
दरिद्र मनुष्य के लिए सारा संसार सूना रहता है।

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