साधुभ्यस्ते निवर्तन्ते पुत्रमित्राणि बान्धवाः।
ये च तैः सह गन्तारस्तद्धर्मात् सुकृतं कुलम्।।४.२।।
संसार के अधिकांश पुत्र , मित्र और बान्धव सज्जनों से पराङ्मुख ही रहते हैं , लेकिन जो पराङ्मुख न रह कर सज्जनों के साथ रहते हैं , उन्हीं के धर्म से वह कुल पुनीत हो जाता है।
ये च तैः सह गन्तारस्तद्धर्मात् सुकृतं कुलम्।।४.२।।
संसार के अधिकांश पुत्र , मित्र और बान्धव सज्जनों से पराङ्मुख ही रहते हैं , लेकिन जो पराङ्मुख न रह कर सज्जनों के साथ रहते हैं , उन्हीं के धर्म से वह कुल पुनीत हो जाता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें