बुधवार, 16 मार्च 2016

४.२ सज्जनों के साथ

साधुभ्यस्ते निवर्तन्ते पुत्रमित्राणि बान्धवाः।
ये च तैः सह गन्तारस्तद्धर्मात् सुकृतं कुलम्।।४.२।।

संसार के अधिकांश पुत्र , मित्र  और बान्धव सज्जनों से पराङ्मुख ही रहते हैं , लेकिन जो पराङ्मुख न रह कर सज्जनों के साथ रहते हैं , उन्हीं के धर्म से वह कुल पुनीत हो जाता है।

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