रविवार, 27 मार्च 2016

१६.१० गुण

 गुणैः सर्वज्ञतुल्योऽपि सीदत्येको निराश्रयः।
अनर्घ्यमपि माणिक्यं हेमाश्रयमपेक्षते।।१०।।

कोई गुण में चाहे विष्णु भगवान् के समान ही क्यों न हो पर आश्रय के बिना अकेला रहकर भी वह दुखी ही होता है। मणि कितना ही बेशकीमती क्यों न हो , जब तक कि वह सोने के किसी जेवर में नहीं जड़ा जाता तबतक बेकार ही रहता है।  

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