रविवार, 27 मार्च 2016

१६.२ स्त्रियाँ

जल्पन्ति सार्द्धमन्येन पश्यन्त्यन्यं सविभ्रमाः।
हृदये चिन्तयन्त्यन्यं न स्त्रिणामेकतो रतिः।।१६.२।।

स्त्रियाँ बातें दूसरे से करती हैं , नखड़े के साथ देखती हैं , किसी दूसरे की ओर , मन में सोचती है किसी और को , स्त्रियों का प्रेम एक जगह रहता ही नहीं है।

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