रविवार, 27 मार्च 2016

१७.२ समान व्यवहार

कृते प्रतिकृतिं कुर्यात् हिंसने प्रतिहिंसनम्।
तत्र दोषो न पतति दुष्टे दौष्ट्यं समाचरेत्।।१७.२।।

उपकारी के प्रति उपकार और हिंसक के प्रति हिंसा करने में कोई दोष नहीं है, दुष्ट के साथ दुष्टता ही करनी चाहिये।

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